MOHD GHAZALI

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लेखनी प्रतियोगिता -05-May-2022

मेरे हमदम!

गिले-शिकवे भुलाकर सब में वापस लौट सकता हूं।
मेरा शाहिद है मेरा रब में वापस लौट सकता हूं।
मगर ए मेरे हमदम रास्ता तेरा किधर का है?
इरादा क्या तेरा इस बार ला फानी सफर का है ?
कहां से आए थे हम तुम कहां तक आ गए हैं हम?
मोहब्बत थी बहुत हम में पर अब घबरा गए हैं हम ।
दिलों की फिक्र क्यों करते हो कि  दिल बाकी कहां अपने?
दिलों में एक दूजे के तो आब बस्ते नहीं हैं हम ।
समझता हूँ मगर दिल की तुम्हारे खूब जाने जाँ |
तुम्हें जाना है दुनिया में बिल्कुल डूब जान - ए - जाँ I
 तुम्हें राहों से उल्फत है तुम्हें राहे मुबारक हों  | 
नयी बाहों की चाहत है नयी बाहें मुबारक हों ।
मगर एहसान एक हमदम मेरे करते हुए जाओ ।
मेरी तुरबत को मिट्टी से ज़रा भरते हुए जाओ ।

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15 Comments

Reyaan

06-May-2022 11:32 AM

👌👏🙏🏻

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Abhinav ji

06-May-2022 06:47 AM

Nice

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Renu

06-May-2022 02:58 AM

👍👍

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